बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र
प्रश्न- अनुपलब्धि या अभाव किसे कहते हैं?
अथवा
मीमांसा दर्शन में अनुपलब्धि प्रमाण की विवेचना कीजिए।
अथवा
मीमांसा दर्शन में अनुपलब्धि प्रमाण की व्याख्या कीजिए।
अथवा
मीमांसा के ज्ञान के साधन के रूप में अनुपलब्धि की व्याख्या कीजिये।
उत्तर -
अनुपलब्धि या अभाव
(Non-apprehension or Absence)
भारतीय दर्शन में इसे स्वतन्त्र प्रमाण के रूप में नहीं माना जाता। मीमांसा दर्शन में केवल भट्ट मीमांसा और अद्वैत वेदान्त दर्शन में इसे छठे प्रमाण के रूप में माना गया है। कुमारिल भट्ट ने इसे प्रमाण माना, परन्तु प्रभाकर ने इसे स्वीकार नहीं किया।
अनुपलब्धि से तात्पर्य है जब किसी विषय के अभाव (absence) का प्रत्यक्ष ज्ञान हमें प्राप्त होता है, उसे अनुपलब्धि कहते हैं जैसे कमरे में घड़ा नहीं है, यहाँ घड़े का अभाव अनुपलब्धि कहलायेगा। अनुपलब्धि का हम प्रत्यक्ष के अन्तर्गत समावेश नहीं करते। प्रत्यक्ष शब्द की उत्पत्ति दो शब्द प्रति + अक्षण से हुई है तथा इसके तीन अंग हैं-
1. इन्द्रिय,
2. पदार्थ, -
3 सन्निकर्ष 1
जब इन्द्रियों का सन्निकर्ष किसी पदार्थ पर होता है, तभी प्रत्यक्ष होता है। परन्तु अनुपलब्धि में प्रत्यक्ष सम्भव नहीं है, क्योंकि अनुपलब्धि में इन्द्रियों से कार्य तो किया जाता है परन्तु इन्द्रियों का सन्निकर्ष पदार्थ से बिल्कुल नहीं हो पाता। कुमारिल भट्ट के शिष्य प्रभाकर के अनुसार, अनुपलब्धि स्वतन्त्र प्रमाण नहीं है। किसी-किसी वस्तु के अभाव का ज्ञान हमें उस वस्तु के प्रत्यक्ष से प्राप्त होता है।
अन्य शब्दों में अनुपलब्धि का सम्बन्ध, अनुमान, उपमान, अर्थापत्ति, शब्द आदि किसी से प्रत्यक्ष नहीं है। प्रभाकर के अनुसार, ज्ञान की प्रत्येक क्रिया में तीन बातें एक ही समय में विद्यमान होती है
(1) ज्ञाता,
(2) ज्ञेय,
(3) ज्ञान।
मीमांसा दर्शन में मनुष्य की धार्मिक चेतना को बढ़ाकर उसे विकसित करने का कोई भी अवसर नहीं मिलता, इसी कारण वेदान्त दर्शन ने मीमांसा दर्शन के यांत्रिक कर्मकाण्ड का विरोध उसी रूप में किया है जिस रूप में ईसा मसीह ने पारसियों का विरोध किया। मीमांसा का धर्मशास्त्र भी उन्हीं दोषों से भरा हुआ है जिन दोषों से उसके नैतिक विचार त्रस्त हैं। इसके अन्तर्गत केवल वैदिक क्रिया-कलापों को यन्त्रवत् किया जाता है। पूर्व मीमांसा में नैतिक पक्ष पर अधिक बल दिया गया है। कर्म के महत्त्व को अधिक माना जाता है तथा कर्म के सिद्धान्त को यथार्थता का रूप दिया जाता है। धर्म की विषय-वस्तु वेदों से ली जाती है तथा वेद ज्ञान का भण्डार माने जाते हैं।
मीमांसा दर्शन में भट्ट सम्प्रदाय ( भट्ट मीमांसा ) में सर्वप्रथम अनुपलब्धि नामक स्वतन्त्र प्रमाण को स्वीकार किया गया है जिससे अनुपलब्धि प्रमा का ज्ञान प्राप्त होता है। कालान्तर में अद्वैत वेदान्त में भी इसे स्वतन्त्र प्रमाण माना गया। मीमांसा तथा अद्वैत विचार धाराओं में अनुपलब्धि के अतिरिक्त प्रत्यक्ष, अनुमान, शब्द, उपमान, अर्थापत्ति को भी ज्ञान का स्वतन्त्र साधन माना जाता है। किसी वस्तु में अभाव का ज्ञान अनुपलब्धि प्रमाण से प्राप्त होता है। जैसे जब हम कहते हैं कि 'इस कमरे में घड़ा नहीं है तब हम घड़े के अभाव का ज्ञान प्राप्त करते हैं। यह ज्ञान हमें अनुपलब्धि प्रमाण से प्राप्त होता है। इसका ज्ञान प्रत्यक्ष अनुमान आदि ज्ञान के अन्य साधनों से नहीं प्राप्त हो सकता। हमें अभाव का ज्ञान प्रत्यक्ष द्वारा नहीं हो सकता, क्योंकि प्रत्यक्ष में एक उपस्थित पदार्थ के साथ इन्द्रियार्थ भी सन्निकर्ष आवश्यक है जो अभाव के ज्ञान में असम्भव है। अनुपलब्धि ऐसे पदार्थ के ज्ञान का साधन है जिसका अभाव बताया गया है। हम रिक्त कमरे का प्रत्यक्ष करते हैं और घड़े के अभाव के विषय में विचार करते हैं। यदि हम कहते हैं कि घड़े के अभाव का भी उसी प्रकार प्रत्यक्ष हुआ जिस प्रकार रिक्त कमरे का प्रत्यक्ष हुआ तो भी हम अनुपलब्धि की क्रिया तथा प्रत्यक्ष ज्ञान को एक ही नहीं स्वीकार कर सकते, क्योंकि प्रत्यक्ष में किसी सत् पदार्थ का इन्द्रियार्थसन्निकर्ष निहित है। हम रिक्त कमरे को प्रत्यक्ष देखते हैं, अनुपस्थित घड़े का स्मरण करते हैं। तत्पश्चात् कही जाकर हमें घड़े के अभाव का ज्ञान होता है। इसका प्रत्यक्ष क्रिया से कोई सम्बन्ध नहीं है अभाव का ज्ञान अनुपलब्धि प्रमाण द्वारा होता है अभाव को ज्ञान का एक विध्यात्मक विषय कहा जाता है। जिसे हम 'रिक्त कमरा' कहते हैं वह एक ऐसा स्थान है जिसे किसी पदार्थ ने घेर नहीं रखा है। भट्ट मीमांसा के अनुसार अनुपलब्धि का अन्तर्भाव अनुमान प्रमाण में भी नहीं कर सकते हैं, क्योंकि अनुमान व्याप्ति ज्ञान पर आधारित है। इसे अनुमान जन्य तभी स्वीकार किया जा सकता है जब अनुपलब्धि और अभाव में व्याप्ति सम्बन्ध स्वीकार किया जाए। परन्तु ऐसा स्वीकार करने पर आत्माश्रय दोष होगा, क्योंकि साध्य विषय को पहले ही स्वीकार कर लिया जाता है। इसे शब्द तथा उपमान प्रमाणों के अन्तर्गत भी नहीं रखा जा सकता, क्योंकि इसकी प्राप्ति न तो आप्त वाक्य से होती है और न सादृश्य ज्ञान से ही इन युक्तियों से भट्ट मीमांसक अनुपलब्धि को ज्ञान का एक स्वतन्त्र साधन मानते हैं जिससे किसी वस्तु के अभाव का ज्ञान प्राप्त होता है।
प्रभाकर मीमांसा, सांख्य दर्शन एवं न्याय दर्शन में अनुपलब्धि को ज्ञान का स्वतन्त्र साधन नहीं माना जाता है। ये विचारक किसी न किसी रूप में अनुपलब्धि का अन्तर्भाव प्रत्यक्ष प्रमाण में आते हैं। इनके विचारों की पृष्ठभूमि में इनके अभाव विषयक विचार निहित है। प्रभाकर के अनुसार किसी वस्तु के अस्तित्व से प्रथक् अभाव की कोई सत्ता नहीं होती। एक अस्तित्ववान वस्तु अपने सन्दर्भ में सत् नहीं मानी जाती है और दूसरी वस्तुओं के सन्दर्भ में असत् ( अभाव) स्थान (कमरा ) स्वतः अपने सन्दर्भ में, जिस पर घट नहीं है अस्तित्ववान निर्णीत होता है और घट के सन्दर्भ में असत् अथवा अभाव रूप अतः अभाव की कोई सत्ता नहीं है। जमीन (कमरे में) पर घड़े का अभाव अधिष्ठान के अस्तित्व के अतिरिक्त कुछ नहीं है। यह किसी भी रूप में जमीन के अस्तित्व की किसी अवस्था के अनुरूप नहीं है अपितु जमीन में विशुद्ध अस्तित्व (भूतल मात्र) के एकरूप है। अतः प्रभाकर के अनुसार अधिष्ठान मात्र का प्रत्यक्ष ज्ञान ही वहाँ घड़े के अभाव का भी ज्ञान करा देता है। सांख्य दर्शन के अनुसार भी अधिष्ठान के अनेक परिणामों में से एक जो विषयवस्तु से रहित है, जमीन (कमरा ) पर घट के अभाव के समरूप है। अतः किसी वस्तु के अभाव का ज्ञान प्रत्यक्ष द्वारा हो सकता है, क्योंकि भूमि पर घड़े के अभाव के प्रत्यक्ष का अर्थ है, जमीन का प्रत्यक्षमात्र और इसका बोध ज्ञानेन्द्रिय सन्निकर्ष से सम्भव है। अतः प्रभाकर मीमांसा एवं सांख्य दर्शन के अनुसार घड़े के अभाव का ज्ञान प्रत्यक्ष के द्वारा ही संभव है तथा उसके लिए अनुपलब्धि सदृश किसी स्वतन्त्र प्रमाण की आवश्यकता नहीं है। वेदान्त दर्शन के अनुसार अभाव का ज्ञान प्रत्यक्ष से नहीं हो सकता। उसके लिए एक स्वतन्त्र प्रमाण की आवश्यकता है। यह प्रमाण अनुपलब्धि प्रमाण है।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन में प्रमाण विचारों का अर्थ बताइए तथा साधनों का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- योग दर्शन में ईश्वर के स्वरूप की विवेचना कीजिए तथा उसके अस्तित्व को सिद्ध करने सम्बन्धी प्रमाणों की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- न्याय दर्शन से ईश्वर किन रूपों में कार्य करता है।
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- प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार अनुमान' के स्वरूप और प्रकारो की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार सोलह पदार्थों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- प्रमा को परिभाषित करते हुए प्रमा के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्रमा की परिभाषा दीजिए तथा उसके सामान्य लक्षणों पर प्रकाश डालिए।
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- प्रश्न- न्याय के आलोक में पदार्थ के विभिन्न प्रकारों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- शब्द-प्रमाण में शब्द को स्वतन्त्र प्रमाण माना गया है विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- उपमान प्रमाण के स्वरूप का विवेचन करते हुए इसकी परिभाषा दीजिए।
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- प्रश्न- अनुमान क्या है? परमार्थानुमान व स्मार्थानुमान को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- प्रत्यक्ष प्रमाण का स्वरूप क्या है?
- प्रश्न- न्यायदर्शन में निर्विकल्प प्रत्यक्ष का स्वरूप समझाइये।
- प्रश्न- न्यायदर्शन में उपमान प्रमाण का क्या स्वरूप है? न्याय दर्शन में उपमान प्रमाण का स्वरूप
- प्रश्न- चार्वाक दर्शन में अनुमान प्रमाण का खंडन किस प्रकार करता है?
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- प्रश्न- प्रमा और अप्रमा के भेद को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- न्याय दर्शन में कितने प्रमाण स्वीकार किए गए हैं? सभी का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- समानतन्त्र के रूप में न्याय वैशेषिक की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के पदार्थों के नाम लिखिये।
- प्रश्न- वैशेषिक द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में कितने गुण होते हैं?
- प्रश्न- कर्म किसे कहते हैं? व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सामान्य की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- विशेष किसे कहते हैं? लिखिए।
- प्रश्न- समवाय किसे कहते हैं?
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में अभाव क्या है?
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन क्या है? न्याय दर्शन और वैशेषिक दर्शन में आपस में क्या सम्बन्ध है? वैशेषिक दर्शन में सात प्रकार के पदार्थ बताइए।
- प्रश्न- व्याप्ति क्या है? व्याप्ति की स्थापना किस प्रकार होती है?
- प्रश्न- 'गुण' और 'कर्म' पदार्थों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- न्याय-वैशेषिक दर्शन के स्वरूप पर प्रकाश डालिए?
- प्रश्न- न्याय-वैशेषिक दर्शन में अनुमान का क्या स्वरूप है?
- प्रश्न- समानतन्त्र के रूप में न्याय वैशेषिक की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- संयोग और समवाय पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मीमांसा से क्या तात्पर्य है इसे भली-भाँति समझाइये।
- प्रश्न- पूर्व मीमांसा किसे कहते हैं?
- प्रश्न- द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मीमांसा दर्शन में ज्ञान के कितने साधन माने गये हैं?
- प्रश्न- उपमान किसे कहते हैं?
- प्रश्न- अर्थापत्ति किसे कहते हैं?
- प्रश्न- अनुपलब्धि या अभाव किसे कहते हैं?
- प्रश्न- मीमांसा के तत्व विचार की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मीमांसकों ने 'आत्मा' का क्या स्वरूप बतलाया है?
- प्रश्न- शंकराचार्य ने ब्रह्म के कितने स्वरूपों की व्याख्या की है?
- प्रश्न- ब्रह्म और माया क्या है?
- प्रश्न- ब्रह्म और जीव क्या हैं?
- प्रश्न- माया में कितनी शक्तियों का समावेश है?
- प्रश्न- "ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या" शंकर के इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं? शंकर के ब्रह्म और जगत सम्बन्धी विचारों के सन्दर्भ में विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- अद्वैत दर्शन में जीव के बंधन और मोक्ष पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- प्रभाकर मत में अख्यातिवाद क्या है? और यह किस प्रकार भट्ट मत के विपरीत ख्यातिवाद से भिन्न है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शंकर का अद्वैत वेदान्त क्या है?
- प्रश्न- अद्वैत वेदान्त में निर्गुण ब्रह्म और सगुण ब्रह्म में क्या भेद बताया गया है? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शंकर के 'ईश्वर' विचार की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- जीव किसे कहते हैं?
- प्रश्न- शंकर के अद्वैतवाद तथा रामानुज के विशिष्ट द्वैतवाद में अन्तर बताइए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन किसे कहते हैं? शंकर के वेदान्त दर्शन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- क्या विश्व शंकर के अनुसार वास्तविक है? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- रामानुज शंकर के मायावाद का किस प्रकार खण्डन करते हैं?
- प्रश्न- शंकर की ज्ञान मीमांसा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शंकर के ईश्वर विचार की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- माया क्या है? माया सिद्धान्त की रामानुज द्वारा दी गई आलोचना का विवरण दीजिए।
- प्रश्न- रामानुज के विशिष्टाद्वैत वेदान्त से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- रामानुज के अनुसार ब्रह्म क्या है? ईश्वर व ब्रह्म में भेद बताइए।
- प्रश्न- रामानुज के अनुसार मोक्ष व उनके साधनों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- जीवात्मा के भेदों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- रामानुज के अनुसार ज्ञान के साधन क्या हैं?
- प्रश्न- रामानुज के 'जीव सम्बन्धी विचार की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- रामानुज के जगत की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- विशिष्ट द्वैत दर्शन की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- चित् व अचित् तत्व क्या हैं?
- प्रश्न- बन्धन और मोक्ष क्या है?
- प्रश्न- चित्त क्या है?